आदतन तुमने कर दिए वादे, आदतन हमने ऐतबार किया |
तेरी राहों में बाराहा रुक कर, हमने अपना ही इंतज़ार किया |
अब ना मांगेंगे ज़िन्दगी या रब, ये गुनाह हमने एक बार किया ||
क्या बताएं कि जान गयी कैसे, फिर से दोहराएँ वो घडी कैसे |
किसने रास्ते में रखा था चाँद, मुझको वहां ठोकर लगी कैसे ||
-गुलजार
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