Monday, September 28, 2009

शिवओम अम्बर संचालन

उमर का और प्रतिभा का सगा नाता नहीं कोई |
हमेशा दर्द गाता है आदमी गाता नहीं कोई ||

सियासत के प्रवक्ता रोज़ लय सुर ताल बदलेंगे,
कहीं चेहरा कहीं चिंतन कहीं पे चाल बदलेंगे |
कभी पगड़ी बदल लेंगे कभी रूमाल बदलेंगे,
मिले कुर्सी तो अपनी वल्दियत हर साल बदलेंगे ||

कहीं ऐसा ना हो धैर्य के हिमखंड गल जाएँ,
सहज शालीनता के स्वर शरारों मे बदल जाएँ |
जिन्हें विद्वेष वन्दे-मातरम से है,
हमारे गाँव की सीमा से खुद बाहर निकल जाएँ ||

या बदचलन हवाओं का रुख मोड़ देंगे हम,
या खुद तो वाणीपुत्र कहना छोड़ देंगे हम |
जिस दिन भी हिचकिचाएंगे लिखने में हकीक़त,
कागज़ को फाड़ देंगे कलम को तोड़ देंगे हम ||

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